- भगवती सूत्र आगम के द्वारा आचार्यश्री ने उपशांत रहने और ज्ञान के विकास की दी प्रेरणा
- अपने गुरुओं के गुरु की जन्मभूमि पर कर रहा हूं चतुर्मास : आचार्यश्री महाश्रमण
- आचार्य कालूगणी के 135वें दीक्षा दिवस पर आचार्यश्री ने श्रद्धालुओं को किया अभिप्रेरित
28.09.2022, बुधवार, छापर, चूरू (राजस्थान)। वर्ष 2022 का चतुर्मास छापर की धरा पर कर रहे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में अनेकानेक कार्यक्रम प्रायः आयोजित हो रहे हैं। तेरापंथ धर्मसंघ की अनेक संस्थाओं के साथ-साथ तेरापंथ धर्मसंघ के गुरुओं व पूर्वाचार्यों, व्यवस्थाओं आदि से जुड़े हुए विशेष दिन का आयोजन भी आध्यात्मिक वातावरण में आयोजित हो रहा है। बुधवार को भी आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में एक नहीं दो-दो कार्यक्रम समोजित हुआ। मुख्य प्रवचन कार्यक्रम तथा नवाह्निनक आध्यात्मिक अनुष्ठान के साथ एक ओर जहां अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह के अंतर्गत तीसरे दिन को अणुव्रत प्रेरणा दिवस के रूप में तथा दूसरा आयोजन तेरापंथ धर्मसंघ के अष्टमाचार्य, गणाधिपति आचार्यश्री तुलसी और प्रेक्षा प्रणेता आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के गुरु आचार्य कालूगणी की जन्मधरा पर उनका 135वें दीक्षा दिवस के रूप में आयोजन किया गया।
आचार्यश्री ने बुधवार को सर्वप्रथम भगवती सूत्र आगम के माध्यम से जनता को पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि चार प्रकार के देव निकायों में अनुत्तरोपपातिक गति के देव उच्च कोटि के होते हैं। प्रश्न किया गया कि अनुत्तरोपपातिक देव अपने विमान में रहते हुए मनुष्य लोक में स्थित केवली के साथ आलाप अथवां संलाप करने में समर्थ हैं? उत्तर दिया गया कि हां, समर्थ होते हैं। वे देव बहुत ज्यादा दूर होते हैं। वे दूर से ही केवली से अपनी जिज्ञासाओं को समाहित करने के लिए भाव रूप से केवली से सम्पर्क करते हैं। वहां देवलोक में तो कोई केवली होता नहीं, इसलिए उन्हें मनुष्यलोक में स्थित केवली से भाव के माध्यम से सम्पर्क करना पड़ता है। वे भावों से सम्पर्क करते हैं और केवली के भावों से वे अनुत्तरोपपातिक देवता अपनी जिज्ञासाओं का उत्तर ग्रहण कर लेते हैं। इस बात से यह ध्यान दिया जा सकता है, जिस प्रकार मोबाइल फोन के माध्यम से दूर बैठे व्यक्ति से सम्पर्क किया जाता है, उसी प्रकार यह भी एक विधा है। इस प्रकार यह माना जा सकता है कि मोबाइल फोन से वार्तालाप के विधा का मूल स्रोत हमारे प्राचीन साहित्य हैं। इस प्रकार आचार्यश्री ने अनुत्तरोपपातिक देवों के विषय में वर्णन करते हुए उनसे शांति और मोह उपशांति की प्रेरणा ग्रहण करने को अभिप्रेरित किया।
अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह के अंतर्गत तीसरे दिन आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में आज अणुव्रत प्रेरणा दिवस का समायोजन हुआ। इस संदर्भ में आचार्यश्री ने उपस्थित जनता को मंगल प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि परम पूज्य आचार्यश्री तुलसी ने अणुव्रत आंदोलन का शुभारम्भ किया। साधु का जीवन तो पंच महाव्रतों से भावित होता है, किन्तु आम आदमी तो महाव्रती नहीं बन सकता है, इसलिए वह अपने जीवन के कल्याण के लिए अणुव्रतों का स्वीकरण करे। अणुव्रतों के छोटे-छोटे नियमों को स्वीकार करे तो वह अपने वर्तमान जीवन के कल्याण के साथ आगे के जीवन को भी अच्छा बना सकता है। अणुव्रत के नियमों को स्वीकार करने के लिए किसी का जैनी बनना आवश्यक नहीं है और यहां तक कि आस्तिक होना भी अपेक्षित नहीं है। जैसे किसी निरपराध की हत्या नहीं करना, प्रमाणिक बनना, अनैतिकता का त्याग कर नैतिक बनना आदि-आदि अनेक छोटे-छोटे नियमों का स्वीकरण कर आदमी अपने वर्तमान जीवन के साथ-साथ अपने परलोक भी अच्छा बना सकता है। इन नियमों को जीवन में जितना संयम आता है, जीवन भी अच्छा बनता चला जा सकता है।
आचार्यश्री ने आचार्य कालूगणी की जन्मधरा पर आयोजित 135वें दीक्षा दिवस के संदर्भ में कहा कि परम पूज्य कालूगणी गणाधिपति आचार्यश्री तुलसी और आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के गुरु थे। मेरा सौभाग्य है कि मुझे अपने गुरुओं के गुरु की जन्मधरा पर मेरा चतुर्मास हो रहा है। परम पूज्य कालूगणी से प्रेरणा प्राप्त कर साधना की दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास हो, यह काम्य है। कार्यक्रम में श्रीमती सरोज भंसाली, सुश्री प्रिया दुधोड़िया और बालक हर्षिल बरड़िया ने अपनी प्रस्तुति दी।