- आचार्यश्री ने श्रद्धालुओं को परहित में शक्ति के सदुपयोग की दी प्रेरणा
- नवाह्निक आध्यात्मिक अनुष्ठान का प्रारम्भ, महातपस्वी महाश्रमण ने कराया मंत्र जप का प्रयोग
- अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का भी पूज्य सन्निधि में मंगल शुभारम्भ
- सांप्रदायिक सौहार्द दिवस पर आचार्यश्री ने पर सौहार्द व मैत्री भावना के विकास दी प्रेरणा
26.09.2022, सोमवार, छापर, चूरू (राजस्थान)। साधना की शक्ति से सम्पन्न, सिद्ध साधक, अखण्ड परिव्राजक, मानवता के मसीहा, जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में सोमवार को शारदीय नवरात्र के प्रथम दिन से नवाह्निनक अनुष्ठान का आध्यात्मिक शुभारम्भ हुआ। साथ ही अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का आयोजन भी प्रारम्भ हुआ। मानवता का शंखनाद करते हुए हजारों किलोमीटर की पदयात्रा करने वाले, सिद्ध साधक आचार्यश्री महाश्रमणजी ने इस अवसर पर मंत्र जप का प्रयोग कराया। जनता को अपनी शक्ति के विकास और उसके सदुपयोग की प्रेरणा दी। वहीं अणव्रत उद्बोधन सप्ताह के अंतर्गत ‘सांप्रदायिक सौहार्द दिवस’ पर परस्पर सौहार्द और मैत्री की भावना को बनाए रखने का पावन पाथेय भी प्रदान किया।
सोमवार को आश्विन मास के शुक्लपक्ष का प्रथम दिन। पूरे देश-दुनिया में इसे शारदीय नवरात्र के रूप में जाना जाता है। यह समय शक्ति की उपासना का होता है। इस संदर्भ में छापर में चतुर्मास कर रहे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में भी नवाह्निक आध्यात्मिक अनुष्ठान का शुभारम्भ हुआ। चतुर्मास प्रवास स्थल परिसर में बने भव्य आचार्य कालू महाश्रमण समवसरण में समुपस्थित श्रद्धालुओं को आचार्यश्री ने मंगल प्रवचन को प्रारम्भ करने से पूर्व लगभग आधे घंटे तक विभिन्न मंत्रों के जप का प्रयोग कराया।
तदुपरान्त आचार्यश्री ने भगवती सूत्र आगम के माध्यम से उपस्थित जनमेदिनी को मंगल पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि एक प्रश्न किया गया कि क्या केवली अंतकर अथवा अंतिम शरीरी को देखता और जनता है? भगवान महावीर ने उत्तर दिया कि हां, केवली अंतकर और अंतिम शरीरी को देखता और जानता है। क्योंकि केवली अनंत शक्ति सम्पन्न होते हैं। आज नवरात्र का प्रारम्भ हुआ है। चैत्र मास और आश्विन मास का नवरात्र प्रसिद्ध है। यह नवरात्र का समय दिन-रात का समय लगभग समान काल वाले होते हैं। विशेष गर्मी भी नहीं, और भयंकर सर्दी भी नहीं, एक समशीतोष्ण-सा यह समय है। यह आश्विन मास का नवरात्र एक प्रसिद्ध समय है। कितने-कितने लोग अपने-अपने ढंग से इसे मनाते हैं। मंदिर जाना, पूजापाठ, जप, तप आदि-आदि द्वारा शक्ति की आराधना की जाती है। हमारी परम्परा में भी इस दौरान आध्यात्मिक अनुष्ठान किया जाता है। आर्षवाणी के पाठ, मंत्र आदि-आदि का जप करते हैं। इसके साथ तप भी जोड़ा जा सकता है। यह शक्ति की साधना का समय प्राकृतिक रूप में निर्धारित है। शक्तियां अनेक प्रकार की होती हैं- ज्ञान की शक्ति, श्रद्धा की शक्ति अथवा बल, अपने ईष्ट या आराध्य के प्रति श्रद्धा का बल भी होता है। संयम की शक्ति, तपस्या की शक्ति और बल है। इसके साथ तनबल, धनबल, वचनबल, मनोबल भी होता है। सब बलों से बड़ा बल संभवतः आत्मबल है। आत्मा का बल सबसे बड़ा बल है। केवली से बड़ा आत्मबली कोई नहीं। वे आदर्श शक्ति सम्पन्न होते हैं। आदमी भी शक्ति सम्पन्न होना चाहता है। आदमी भी अपने तनबल, वचनबल, मनोबल और आत्मबल को बढ़ाने का प्रयास करे। इसके साथ ही आदमी शक्ति अथवा बल का विकास करे किन्तु उसके पास उसके प्रयोग का विवेक भी होना चाहिए। आदमी अपनी शक्ति का नियोजन किसी को कष्ट देने, पीड़ा पहुंचाने और मारने में नहीं, अपितु किसी की पवित्र धार्मिक-आध्यात्मिक सेवा करने, दूसरों का हित करने में लगाए तो शक्ति का सार्थक सदुपयोग हो सकता है। इस प्रकार परहित के संकल्प के साथ शक्ति की साधना हो तो वह फलदायी हो सकती है।
वर्तमान अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह के प्रथम दिन ‘साम्प्रदायिक सौहार्द दिवस’ के संदर्भ में उपस्ति जनता को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आज अणुव्रत उद्बोधन दिवस का शुभारम्भ हो रहा है। आदमी के भीतर सद्वृत्तियां और दुर्वृत्तियां भी होती हैं। साधु के महाव्रत होते हैं तो गृहस्थ लोग भी अपने जीवन में छोटे-छोटे व्रतों अर्थात् अणुव्रतों को स्वीकार कर ले तो अपने जीवन को अच्छा बना सकता है। आचार्य तुलसी ने अणुव्रत आंदोलन का शुभारम्भ किया था। आदमी अपने जीवन में झूठ न बोलने, चोरी न करने, नशा न करने, अनावश्यक हिंसा न करने का संकल्प स्वीकार कर अपने जीवन को अच्छा बना सकता है। आज सांप्रदायिक सौहार्द दिवस है। मानव-मानव के प्रति सौहार्द और मैत्री की भावना का विकास हो। सभी प्राणियों के प्रति मैत्री की भावना का विकास हो। विद्यार्थियों में अणुव्रत के संस्कार आएं, सौहार्द और मैत्री की भावना पुष्ट हो, यह काम्य है।
आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में उपस्थित अणुव्रत स्कूल के विद्यार्थियों ने गीतों को प्रस्तुति दी। छापर के बड़े मस्जिद के इमाम मौलाना इश्तियाक खान ने कहा कि हमारे यह लिए यह बड़े गर्व की बात है कि आज मुझे जैन धर्म के सबसे बड़े गुरु आचार्यश्री महाश्रमणजी का दिदार हो रहा है। मेने मन में आपसे मिलने की बहुत इच्छा थी। आज व मौका पाकर बड़ा फख्र हो रहा है। आपकी वाणी से पूरे समाज को फायदा हो रहा है।