नई दिल्ली:पोलैंड में अगले महीने जलवायु परिवर्तन पर होने वाली कांफ्रेंस ऑफ पार्टीज (कॉप 24) की बैठक में विकसित और विकासशील देशों के बीच टकराव की नौबत आ सकती है। दरअसल, इस सम्मेलन में पेरिस समझौते के क्रियान्वयन के लिए पेरिस नियमावली को मंजूरी दी जानी है। नियमावली तैयार है, लेकिन विकसित देशों के रुख के कारण विकासशील और गरीब देश इस मुद्दे पर अपनी नाराजगी प्रकट कर सकते हैं।
जलवायु परिवर्तन क्षेत्र में कार्यरत विशेषज्ञ हरजीत सिंह के अनुसार पोलैंड के बाद पेरिस की बैठक सबसे महत्वपूर्ण है। पेरिस में हुआ था कि जलवायु परिवर्तन के खतरे से निपटने के लिए क्या किया जाना चाहिए। लेकिन कैसे करना है और कब करना है, इसके लिए यह नियमावली बनाई जा रही है।
इसके लिए क्रियान्वय की बाकायदा एक दिशानिर्देश बननी है, जिसे लेकर संयुक्त राष्ट्र के साथ समझौते भी करने होंगे। समय कम है क्योंकि 2020 तक पेरिस समझौते का पूरी तरह से क्रियान्वयन किया जाना है। लेकिन इस राह में अभी कई रोड़े हैं। दरअसल, इस समझौते में असल अड़चन विकसित देशों के रुख को लेकर है। अमेरिका के समझौते से बाहर होने के बाद उससे वित्तीय मदद मिलने के आसार खत्म हो गए। ऑस्ट्रेलिया ने भी अपने लक्ष्यों को छोड़ने की बात कही है। जबकि जर्मनी ने कहा कि कि उसके लिए लक्ष्यों को पूरा कर पाना संभव नहीं है।
यूरोपीय देश हालांकि प्रतिबद्ध हैं। लेकिन तीन बड़े देशों के रुख, ग्लोबल हरित फंड में अपेक्षित राशि जमा नहीं होने से विकासशील और गरीब देशों की तरफ से वित्तीय जरूरतों को लेकर सवाल उठाए जा सकते हैं। क्योंकि मदद के लिए हरित कोष के पास राशि नहीं है।
कॉप 24 सम्मेलन
– पेरिस समझौते के क्रियान्वयन को नियमावली को मिलनी है मंजूरी
– विकसित देशों के रुख पर गरीब, विकासशील देश नाराजगी जता रहे