नई दिल्ली:सेना मे आपसी मुकदमेबाजी को कम करने के लिए रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने तीनों ही सेनाओं को पुराने सभी मुकदमों की समीक्षा करने का निर्देश दिया है। सरकार के इन निर्देशों के पीछे की मंशा है कि किसी तरह सरकार के संसाधन और समय को बचाया जा सके। साथ ही सरकार इस बात को भी प्रोत्साहन नही देना चाहती जिसमें सेनाएं आपसी मुकदमों में उलझी रहें।
नवंबर, 2018 तक के आकड़ों के अनुसार तीनों सेनाओं द्वारा किये गए मुकदमों की संख्या सात हजार से ज्यादा है। यह मुकदमें सेनाओं ने अपने ही सेवानिवृत और दूसरे अधिकारियों पर विवाद उत्पन्न होने पर किये गए है। इसी वर्ष में हुई इस मामले से जुड़ी समीक्षा बैठकों में सेनाएं इन मुकदमें को लेकर कोई ठोस नतीजों पर नही पहुंच सकी है। रक्षा मंत्रालय के आकड़े बताते है कि इसमें से कुछ सौ मामले ही वापस लिये गए है। हाल ही में हुई एक समीक्षा बैठक में मंत्रालय द्वारा यह साफ कहा गया कि इन मुकदमों को सेनाएं साख का और जीत हार का मुद्दा ना बनाए, और इनको प्रतिशोध और विरोध की भावना के चश्में से ना देखे।
मंत्रालय ने सेनाओं को यह भी सलाह दी है कि जिन मामलों का निपटारा देश की उच्च अदालतों में हो चुका है, उन मुकदमों पर जबरदस्ती की अपील लगाने की अनैतिक प्रवृति से बचना चाहिए। ऐसे मामलों को आगे बढाने से पहले गंभीरता से जांच लेना आवश्यक है। साथ ही मंत्रालय ने सह भी कहा है कि जल्द ही तीनों सेनाओं को चाहिए की वो लंबित पड़ी अपीलों को जांच परख कर वापस लेने का काम भी शुरु करें। अपनी बात को दोहराते हुए मंत्रालय ने तीनों सेनाओं को याद दिलाया है कि अपील किसी खास मामले में ही कि जाए, ना कि इसको नियम बना लिया जाए।
इस आदेश के पीछे का मुख्य कारण यह भी है कि सेनाओं द्वारा दायर किये गए इन मुकदमों के चलते सेनाएं सुप्रीम कोर्ट और आर्म्ड फोर्सेज ट्रिब्यूनल में वकीलों को खड़ा करते है, जिसके चलते सरकार को भारी खर्च उठाना पड़ता है। सरकार के विधि अधिकारी इन मामलों में फंसे रहते है, जिसकी वजह से सरकार के संसाधनों का सदुपयोग नही हो पाता। इन अपीलों और मुकदमों की वजह से सरकार का धन और समय दोनो खर्च होता है।सरकार और सेनाएं दोनो ही इस बात पर सहमती बनाने की कोशिश में है, जिसमें कोर्ट के फैसले पर अपील ना कि जाए, और केवल नीतिगत फैसलों पर ही अपील लगाई जाए।
रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने सेना को दिया निर्देश, बेवजह के मुकदमों को वापस लें
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