- भव्य स्वागत जुलूस में उमड़ा मोमासर का जन-जन, सद्भाव की गंगा में बहा जातिगत भेदभाव
- 12 कि.मी. का विहार कर आचार्यश्री पहुंचे तेरापंथ भवन
- आजीविका शुद्धि का प्रयास करे मानव: युगप्रधान आचार्य महाश्रमण
- मोमासर से संबद्ध चारित्रात्माओं संग श्रद्धालुओं ने भी दी अपनी श्रद्धासिक्त अभिव्यक्ति
28.06.2022, मंगलवार, मोमासर, बीकानेर (राजस्थान)। मंगलवार का दिन मोमासरवासियों के महामंगलकारी बन गया। लगभग आठ वर्षों से अधिक समय बाद जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, मानवता के मसीहा आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ मोमासर में पधारे तो मोमासर का जन-जन उनकी स्वागत में उमड़ आया। युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण के भव्य स्वागत जुलूस में सद्भाव की ऐसी गंगा बह रही थी तो जातिगत भेदभाव को कहीं दूर बहा ले गई। जैन हो अजैन सभी महाश्रमण के भक्त नजर आ रहे थे। सबके मुखों से उच्चरित होता जयघोष उनके महाश्रमण भक्त होने का मानों गवाह बन रहा था। मानवता के मसीहा से प्रख्यात आचार्यश्री ने भी बिना किसी भेदभाव के सभी श्रद्धालुओं पर समान रूप से अपने दोनों करकमलों से आशीष प्रदान करते जा रहे थे।
इसके पूर्व मंगलवार को प्रातः आचार्यश्री आडसर से प्रस्थित हुए तभी मोमासर के उत्साहु श्रद्धालु अपने आराध्य के सान्निध्य में पहुंच चुके थे। विहार के दौरान जैसे-जैसे मोमासर की दूरी कम होती जा रही थी, वैसे-वैसे श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ती जा रही थी। इधर मोमासर में मानों मंगलमय अवसर-सा नजारा था। हर ओर होर्डिंग्स, बैनर, तोरण द्वार तेरापंथ और तेरापंथ के आचार्य की यशोगाथा गा रहे थे। मंगल वाद्य यत्रों के साथ सैंकड़ों की संख्या में उपस्थित श्रद्धालु आचार्यश्री की अगवानी में प्रतीक्षारत थे। आचार्यश्री जैसे ही पधारे पूरा वातावरण जयघोष से गुंजायमान हो उठा। मंगल वाद्ययंत्रों की ध्वनि श्रद्धालुओं के उत्साह को और अधिक बढ़ा रही थी। आचार्यश्री से मंगलपाठ का श्रवण कर मोमासर गांव में ‘आचार्य महाश्रमण स्टेडियम’ का उद्घाटन भी किया गया। जन-जन को आशीष देते हुए आचार्यश्री तेरापंथ भवन पहुंचे तो वहां भी श्रद्धालुओं ने आचार्यश्री से मंगलपाठ का श्रवण कर नए रूप में सज्जित तेरापंथ भवन का उद्घाटन किया।
प्रवास स्थल के समीप ही बना तेरापंथ समवसरण पूरी तरह जनाकीर्ण बना हुआ था। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन से पूर्व साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने श्रद्धालुओं को उद्बोधित किया। आचार्यश्री महाश्रमणजी ने समुपस्थित जनमेदिनी को पावन आशीर्वाद प्रदान करते हुए कहा कि आदमी के भीतर अनेक वृत्तियां होती हैं। कुछ दुर्वृत्तियां भी होती हैं तो कुछ सद्वृत्तियां भी होती हैं। माया, मोह, घृणा, लोभ, ईर्ष्या आदि दृर्वृत्तियां तो क्षमा, दया, सेवा, साधना आदि सद्वृत्तियां हैं। एक दुर्वृत्ति है-लोभ। इसे सभी दुर्वृत्तियों का मूल भी कहा गया है। लोभ है तो क्रोध है, माया है, अहंकार, घृणा है और भय भी है। सीधे शब्दों में लोभ को पाप का बाप कहा गया है। इससे अनेक कषाय जन्म लेते हैं। जहां लाभ होता है तो वहां लोभ और अधिक बढ़ता है। अध्यात्म की साधना में लोभ को कम करने का प्रयास किया जाता है। आदमी को अपने कषायों को दूर करने का प्रयास करना चाहिए।
आदमी अपनी आजीविका चलाने के लिए धनार्जन का प्रयास करता है। अधिक से अधिक धनार्जन के लिए आदमी ईमानदारी को छोड़ बेइमानी के सहारा ले लेता है, किन्तु आदमी को आजीविका में शुद्धि रखने का प्रयास करना चाहिए। न्याय और नीति के आधार पर अर्जित किए हुए धन को ही अर्थ कहा जाता है और जो धन अन्याय अनीति से अर्जित किया जाता है, वह तो अर्थाभाष मात्र है। इसलिए आदमी को अपने अर्थाजन में प्रमाणिकता रखने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री ने मोमासर आगमन के संदर्भ में कहा कि साधिक आठ वर्षों बाद मोमासर में आना हुआ है। यहां के लोगों में धर्म, अध्यात्म की चेतना बनी रहे। श्रावक समाज में भी अच्छी जागरूकता बनी रहे। आचार्यश्री ने मोमासर से संबद्ध चारित्रात्माओं का नामोल्लेख करते हुए कहा कि धर्मसंघ के प्रति मोमासर का अच्छा योगदान रहा है। सम्पूर्ण मोमासर समाज में खूब अच्छी भावना का विकास होता रहे।
मंगल प्रवचन के पश्चात मुनि धर्मरुचिजी, साध्वी कमलयशाजी व साध्वी आरोग्यश्रीजी ने अपनी श्रद्धासिक्त अभिव्यक्ति दी। स्थानीय तेरापंथ सभा के अध्यक्ष श्री जगत संचेती, सरपंच श्रीमती सरिता संचेती, विकास परिषद के सदस्य श्री पदमचंद पटावरी, श्री कानारामजी, श्री कन्हैयाल जैन पटावरी, बेल्जीयम प्रवासी श्री सुरेन्द्र बोरड़, स्थानीय व्यवस्था समिति संयोजक श्री शांतिलाल पटावरी, श्री राजेन्द्र संचेती, श्री सुखराज सेठिया, श्री अशोक संचेती, श्रीमती पुष्पा नाहटा, श्री सुरेन्द्र सेठिया, श्री पन्नालाल संचेती व श्रीमती रूबि चोरड़िया ने भी अपने भावों को अभिव्यक्ति दी। स्थानीय तेरापंथ महिला मण्डल व तेरापंथ कन्या मण्डल, मोमासर तेरापंथ समाज व बालिका विधि सेठिया ने पृथक्-पृथक् गीत का संगान कर आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद प्राप्त किया ।