- प्रखर आतप में ठुकरियासर से 12 कि.मी. का विहार कर आडसर पहुंचे महातपस्वी महाश्रमण
- भव्य स्वागत जुलूस के साथ आचार्यश्री पहुंचे तेरापंथ भवन
- अध्ययन, जप और दान में न करें संतोष : आचार्य महाश्रमण
27.06.2022, सोमवार, आडसर, बीकानेर (राजस्थान) : राजस्थान की रेतीली धरती फिर से दहक उठी है। सूर्य की तीव्र किरणों से रेत गर्म होकर तापमान को निरंतर बढ़ा रही है। इसके बावजूद भी मानव-मानव के कल्याण के संकल्प के साथ गतिमान जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, अखण्ड परिव्राजक युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी निरंतर गतिमान हैं। सोमवार को प्रातः आचार्यश्री ठुकरियासर से आडसर की बढ़े तो कुछ समय बात ही रेतीली धरती गर्म होने लगी और लोगों को पसीने से नहलाने लगी। बावजूद इसके आचार्यश्री महाश्रमणजी उपस्थित श्रद्धालुओं को अपने आशीष से आच्छादित करते हुए गंतव्य की ओर बढ़ते जा रहे थे। लगभग 12 किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री आडसर की सीमा में पधारे तो युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की के स्वागत में पूरा गांव ही उमड़ पड़ा। वाद्ययंत्रों की मंगल ध्वनि के मध्य से गूंज रहा जयघोष जन-जन के मन की भावना की अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम बना हुआ था। आचार्यश्री आडसरवासियों को शुभाशीष प्रदान करते आज के प्रवास के लिए आडसर स्थित तेरापंथ भवन में पधारे।
तेरापंथ भवन के निकट ही बने प्रवचन पंडाल में आज श्रद्धालुओं की उपस्थिति के साथ-साथ चतुर्दशी तिथि होने के कारण हाजरी के लिए गुरुकुलवासी साधु-साध्वियां प्रायः गुरु सन्निधि में उपस्थित थे। परम पूज्य आचार्यश्री ने मानों चतुर्विध धर्मसंघ को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आदमी के भीतर कामना होती है। कामना जब अतिरेक की स्थिति में हो तो अहितकर होती है। कामना, इच्छा सभी के भीतर होती है। इच्छा प्रशस्त और अप्रशस्त भी इच्छाएं होती हैं। मनुष्य यदि प्रशस्त इच्छा रखे तो वह उसके लिए हितकारी हो सकती है। अप्रशस्त इच्छाएं अहितकर होती हैं। संतोष होना भी अच्छी बात है, किन्तु इसमें भी दो भेद बताए गए हैं कि आदमी को किन-किन चीजों में संतोष करना चाहिए और किन-किन चीजों में संतोष नहीं करना चाहिए। स्वदार, भोजन और धन में संतोष करने का प्रयास होना चाहिए। यदि इनमें संतोष की भावना है तो अच्छी बात होती है। इसी प्रकार अध्ययन, जप और दान में संतोष नहीं करना चाहिए। इन तीनों में जितना असंतोष हो, उतना ही अच्छा होता है। अध्ययन में कोई एक-दो पुस्तकों के अध्ययन से संतुष्ट हो जाए तो भला क्या और कहां तक पढ़ाई कर पाएगा।
सेवा देने में भी संकोच नहीं होना चाहिए। जितना संभव हो सके, सेवा करने का प्रयास करना चाहिए। किसी को चित्त समाधि प्रदान करने सबसे बड़ी सेवा है। आदमी को सेवा, विद्या और शक्ति का करने का प्रयास करना चाहिए। ज्ञान कितना बढ़ाया जा सके, कितनी अच्छी सेवा दी जा सके, इसका प्रयास करना चाहिए। कठिनाई आए तो अपने आपको प्रसन्न बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए। पवित्र ज्ञान के द्वारा मानव जाति की सेवा करने का प्रयास हो। छोटे-छोटे संतों को ज्ञानार्जन का अच्छा प्रयास करना चाहिए और अपना विकास करने का प्रयास करना चाहिए। इस आदमी अध्यात्म की दिशा में अच्छी प्रगति संभव हो सकती है।
हाजरी वाचन के क्रम में आचार्यश्री ने हाजरी पत्र का वाचन किया। आचार्यश्री की अनुज्ञा से साध्वी सिद्धांतप्रभाजी व साध्वी नमनप्रभाजी ने लेखपत्र का उच्चारण किया। आचार्यश्री साध्वी नमनप्रभाजी को नौ कल्याणक और साध्वी सिद्धांतप्रभाजी को पांच कल्याणक प्रदान किया। उपस्थित चारित्रात्माओं ने अपने स्थान पर खड़े होकर लेखपत्र का उच्चारण किया। तदुपरान्त आडसरवासियों के स्वागत का क्रम आरम्भ हुआ। बालक मोक्ष बरड़िया, श्री राजेश छाजेड़, श्री अजयराज छाजेड़, श्री मनफूल सिंह राजपुरोहित, श्रीमती नीलम बरड़िया, श्रीमती मनीषा तातेड़ व श्री लक्ष्मीकांत बरड़िया ने आचार्यश्री के स्वागत में अपनी हर्षाभिव्यक्ति दी। स्थानीय तेरापंथ महिला मण्डल, तेरापंथ कन्या मण्डल, केवलचंद तातेड़ परिवार व श्रीमती विद्या नाहर ने पृथक्-पृथक् स्वागत गीत का संगान कर अपने आराध्य के श्रीचरणों की अभिवंदना की।