किसी ने खूब कहां था माँ वो होती है जो बाप के ना होने पर मां और बाप दोनों का किरदार निभा लेती है। एक बच्चा बिना बाप के रह सकता है किंतु बिना मां के नहीं क्योंकि जब मां नहीं होती। तो पिता, पिता होने का गिरदार भी नहीं निभा पाता है। मां होना हम सभी के जीवन की एक महत्त्वपूर्ण जरूरत के साथ ही साथ ईश्वर का दिया, आशीर्वाद भी है। जिसे पाकर हम सभी अपना जीवन पाते हैं, बिना मां के ना हमारा जीवन है ना हमारी सांसे। मां होने के कारण ही हम सभी इस दुनिया में आप आते हैं। मां की कोख ही हमें 9 महीने अपने अंदर रख जीवन देती हैं। किंतु इसके बावजूद भी हम उस मां पर उंगली उठाने से बाज नहीं आते हैं। अक्सर देखा है स्त्रियों को मां बनने की सलाह समाज और समाज के ठेकेदारों द्वारो दी जाती रहती है।
एक मां अपने बच्चे को दूध कैसे पिलाएंगी और कब पिलाएंगी, यह भी हमारे समाज के ठेकेदार बताना चाहते हैं। जैसे मानो उनकी ही छाती से एक मां का बच्चा दूध पीने वाला है। मां होना कितना मुश्किल और कितना कठिन कार्य है यह कभी हम समझ नहीं सकते जब तक हम खुद उस स्थान पर नहीं आ जाते, फिर भी हम उस मां पर उंगली उठाने से बाज नहीं आते। एक मां जो पूरा जीवन अपने बच्चे के लिए देती है। शरीर के साथ ही साथ जीवन के हर सपने का त्याग स्त्री मां बनने के लिए करती है क्या पुरुष कभी करता है।
अक्सर महिलाएं ही होती है जो अपने बच्चे के लिए अपना भविष्य और अपनी आज तक की मेहनत को छोड़कर घर बैठकर अपना समय और अपना संपूर्ण जीवन बच्चे को देती है। इसके बावजूद भी केवल यह उसका फर्ज सब समझा जाता है। जैसे मां होना तो उसके लिए एक ज़िम्मेदारी है, जिसे निभाकर हर महिला कोई बड़ा कार्य नहीं करती हैं। क्या हुआ अगर की स्त्री अपने बच्चे के लिए भूखी रह जाती हैं। एक स्त्री की नीद हो या जरूरत सब एक किनारे हो जाते है, बस एक बच्चे को पालना ही माहिला के लिए ज़रूरी हो जाता हैं। पुरुषों का कार्य बाहर जाकर काम करना है और घर में पैसा देना। किंतु महिला का कहां गए पुरुष द्वारा लाइव पैसे नहीं अपने बच्चे और अपने पूरे परिवार की जरूरत को पूरा करना है।
पुरुषों से कभी नौकरी छोड़ने की अपेक्षा नहीं की जाती बच्चा होने पर, बच्चे को पालने के लिए। किन्तु यदि महिला काम पर जाती है बच्चा होने के बाद, तब भी पूरी ज़िम्मेदारी बच्चे की केवल महिला की ही समझी जाती है। यदि कहीं समाज के बनाए नियमों में चूक हो जाती हैं, एक मां से। तो उस मां को हमारे समाज के ठेकेदार एक बूरी मां होने का तमका देने से पीछे नहीं हटते। पुरूष हमारे समाज में कुछ भी करें पुरुष ही कहलाते हैं और उसमें कोई गलतियां नहीं होती, क्योंकि उसकी कोई जिम्मेदारी नहीं होती। यदि कोई पुरुष अपने बच्चों का ध्यान रखता है, उनके वह कार्य करता है जो आमतौर पर हम मां के कार्य समझते हैं। तो उसे एक आदर्श पिता होने का तमका मिल जाता है।
एक ही स्त्री पूरा जीवन अपना एक बच्चे के लगा दे तो वह केवल उसका फर्ज है और एक पुरुष अगर अपने बच्चे के लिए एक छोटा सा कार्य कर दे तो वह महान पिता है। समाज की बनाई परिभाषाएं एक ही कार्य के लिए महिला और पुरुष के लिए अलग-अलग शब्दों का प्रयोग दिखाता है कि कितना भेद है, हमारी सोच में। एक महिला जो अपनी जान पर खेलकर इस दुनिया में एक जीवन को लाती है उसका केवल यह फर्ज समझा जाता है और यदि वह इस में चुक जाए किसी ओर की कोख से अपना बच्चा ले आए, तब से एक मां होने का दर्जा ही नहीं मिलता। हमारे समाज की कैसी सोच है, जहां पुरुष के लिए आज़ादी है, किंतु एक स्त्री के लिए केवल गुलामी है। कब हम अपनी ये सोच बदलेंगे, अब यह नहीं सोचती हूं। किंतु यह जरूर सोचती हूं कि अगर स्त्री ने अपना मन बदल लिया ओर आने वाले जीवन को जन्म देना ही छोड़ दिया। हमारी इस दकियानूसी सोच के चलते हैं। तब किसी हम याद दिलाएंगे की मां होना क्या होता है, इसके कार्य में हम कमी निकाल, समाज के ठेकेदार होने का फर्ज निभाएंगे। मां बनना कोई डिगरी नहीं जिसे हम किसी से ले या दे सकते है। हर महिला को ये प्रकृति का आशीर्वाद है जिसमें हमे अपने विचारों की नकारात्मक सोच को महत्व देना अवश्यक नहीं है।
– राखी सरोज, नई दिल्ली
मदर्स डे स्पेशलः मां की आकृति
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