रेवाड़ी:लद्दाख के रेजांग ला युद्ध में चीन के छक्के छुड़ा देने वाले शूरवीरों को कभी भगोड़ा समझा गया था। मगर जब सच्चाई खुली तो ये सैनिक हीरो साबित हुए। हालांकि आज भी उन्हें मलाल है कि उनके साहस को वो पहचान नहीं मिली। वे चाहते हैं कि इस युद्ध के सभी दस्तावेज सार्वजनिक किए जाएं ताकि जनता को शौर्य की कहानियां पता चल सकें।
रेवाड़ी के इन योद्धाओं के जहन में भारत और चीन के बीच 1962 में हुए युद्ध की यादें आज भी ताजा हैं। रेजांग ला के युद्ध में हिस्सा लेने वाले हवलदार नेहाल सिंह बताते हैं कि बहुत दिनों तक युद्ध में जीवित बचे सैनिकों को भगोड़ा समझा जाता था। जब चीन ने अपने नुकसान का खुलासा किया। तब भारत के जीवंत सेनानियों को युद्ध का हीरो स्वीकार किया गया। वहीं, रेजांग ला के युद्ध में शिरकत कर चुके कप्तान रामचंदर बताते हैं कि लोगों को लगता था कि जिस युद्ध में कंपनी के 124 जवानों में 110 शहीद हो गए। उसमें ये लोग कैसे बच गए। जबकि, इसमें भारतीय सेना अद्भुत वीरता से लड़ी और चीन को युद्ध में इतना नुकसान हुआ कि वे सीजफायर करने के लिए बाध्य हो गए।
रेजांग ला शौर्य समिति के महासचिव नरेश चौहान बताते हैं कि इस युद्ध में शहीद होने वाले 30 सैनिक रेवाड़ी के अलग-अलग गांवों के हैं। युद्ध में बचने वाले चार जीवंत सेनानी भी रेवाड़ी के हैं। हर साल 18 नवंबर को रेवाड़ी में रेजांगला शौर्य दिवस मनाया जाता है।
रेजांग ला युद्ध
18 नवंबर 1962 को चीनी सैनिकों ने लद्दाख की रेजांग ला पोस्ट पर हमला कर दिया था। इस युद्ध में भारत के 110 जवान शहीद हो गए। माना जाता है कि भारतीय सैनिकों ने खुद मरने से पहले चीन के 1300 से ज्यादा सैनिकों को मार गिराया।
रेजांग ला युद्ध : जिन्हें भगोड़ा समझा, वो निकले युद्ध के हीरो
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