नई दिल्ली: निचली अदालतों में जजों के खाली पदों को भरने और उनमें समुचित बुनियादी ढांचा मुहैया कराने में हाई कोर्टों और राज्य सरकारों की सुस्ती पर नाखुशी जताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा, ‘अब बहुत हो चुका।’
प्रधान न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एसके कौल और जस्टिस केएम जोसेफ की पीठ ने न्यायिक अधिकारियों की पांच हजार से ज्यादा रिक्तियों पर संज्ञान लेते हुए सभी 24 हाई कोर्टों और 36 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया कि वे अदालत को सुधारात्मक उपायों से अवगत कराएं। गुरुवार को अदालत ने उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, दिल्ली और पूर्वोत्तर राज्यों में स्थिति की समीक्षा की। पीठ ने कहा, ‘हमें जज चाहिए। हम अपने जजों को काम करते हुए देखना चाहते हैं। हमें उनके लिए अदालती कक्ष, बुनियादी ढांचा और सहायक कर्मचारी चाहिए। वे कहते हैं कि वहां मामले लंबित हैं। बहुत हो चुका…कुछ समस्याएं तो सुलझानी ही होंगी। हम उन्हें (सरकार) दिखाएंगे कि वहां पर्याप्त अदालती कक्ष, कर्मचारी और जजों के लिए आवास नहीं हैं।’
दिनभर की सुनवाई में सबसे पहले उत्तर प्रदेश की समीक्षा की गई। न्यायमित्र श्याम दीवान ने बताया कि प्रदेश की निचली अदालतों में 1,000 और उच्च न्यायिक सेवाओं में 394 पद रिक्त हैं। अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीशों के 125 और 239 पदों को भरने के लिए दो भर्ती प्रक्रियाएं चल रही हैं। इस पर शीर्ष अदालत ने निर्देश दिया कि ये प्रक्रियाएं 31 मार्च और 31 जुलाई, 2019 तक पूरी कर ली जाएं। पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार से पूछा कि क्या नए नियुक्त होने वाले जजों के लिए वह अदालती कक्ष, सहायक कर्मचारी और जजों के लिए आवास उपलब्ध कराने की स्थिति में है? इस पर प्रदेश सरकार ने शपथपत्र देकर कहा कि वह उन्हें पर्याप्त बुनियादी ढांचा मुहैया कराने के लिए प्रतिबद्ध है। अदालत को यह भी बताया गया कि राज्य सरकार ने तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के 6,135 पदों की रिक्तियों के लिए भी विज्ञापन दिया है। नियुक्ति के बाद ये कर्मचारी जजों के सहायक कर्मचारियों के तौर पर कार्य करेंगे।
दिल्ली हाई कोर्ट की रजिस्ट्री और आप सरकार ने शीर्ष अदालत को बताया कि राष्ट्रीय राजधानी की निचली अदालतों में 201 पद रिक्त हैं। लेकिन उसने दो अलग-अलग भर्ती प्रक्रियाओं में 100 पदों के लिए ही विज्ञापन दिया है। इस पर पीठ ने सवाल किया, ‘2017 से आपने 50-50 पदों के विज्ञापन दिए हैं। क्या आपको 100 अन्य न्यायिक अधिकारियों की जरूरत नहीं है?’ इस पर रजिस्ट्रार ने कहा कि अदालती कक्षों और अन्य बुनियादी ढांचे को लेकर समस्याएं हैं। दिल्ली सरकार ने हलफनामा देकर कुछ अदालतों का निर्माण करने के लिए तीन साल का समय तय किया है। इस पर पीठ ने कहा, ‘हम तीन साल इंतजार नहीं कर सकते।’ पीठ ने कहा कि अदालतों को किराये के परिसरों में चलाने का विकल्प तलाशा जा सकता है। शीर्ष अदालत ने दिल्ली हाई कोर्ट को निर्देश दिया कि वह 100 जजों की भर्ती प्रक्रिया 31 जनवरी और 30 मई, 2019 तक पूरी कर ले। 50 पदों का विज्ञापन एक दिन पहले देने पर भी शीर्ष अदालत ने दिल्ली हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल की खिंचाई की।
पीठ ने पश्चिम बंगाल की न्यायपालिका में भी बुनियादी ढांचे और कर्मचारियों की कमी पर संज्ञान लिया। अदालत ने कहा कि जरूरत पड़ने वह राज्य के मुख्य सचिव को तलब कर सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र, गोवा, छत्तीसगढ़ और कुछ पूर्वोत्तर राज्यों की इस दिशा में प्रगति पर अदालत ने संतोष व्यक्त किया। इस मामले की अगली सुनवाई पांच दिसंबर को होगी।
अदालतों में धीमी भर्ती प्रक्रिया से निराश सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘अब बहुत हो गया’
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