आदित्य तिक्कू।।
हिजाब पर छिड़े विवाद के मामले में भारत विरोधी ताकतों, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की भी एंट्री हो गई है, जो खुद को मुसलमानों का ठेकेदार बताते हैं। वैसे कल रात में ही पता चला जॉर्डन के किंग अब्दुल्लाह द्वितीय और उनके परिवार के बारे में जिनकी रॉयल फैमिली को पैगम्बर मोहम्मद साहब का वंशज माना जाता है। लेकिन ये परिवार हिजाब और बुर्के की परम्परा और पहनावे का पालन नहीं करता। किंग अब्दुल्लाह II ने अमेरिका और ब्रिटेन में रह कर पढ़ाई की है। वो शुरुआत से कट्टरपंथी इस्लामिक सोच के खिलाफ रहे हैं। आपको बता दें कि जॉर्डन में लगभग 90% आबादी मुसलमानों की है। लेकिन इसके बावजूद वहां का राज परिवार हिजाब और दूसरी मान्यताओं को नहीं मानता। लेकिन भारत के स्कूलों में हिजाब पहनने की मांग की जा रही है क्यों की हम करने दे रहे है।इस मामले में नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मलाला युसुफ़ज़ई ने भी ट्वीट करके कर्नाटक की मुस्लिम छात्राओं का समर्थन किया है। उन्होंने अपने एक ट्वीट में लिखा है कि मुस्लिम छात्राओं को हिजाब में स्कूल जाने से रोकना भयावह है। कम या ज़्यादा कपड़े पहनने के मामले में महिलाओं को एक वस्तु की तरह समझा जाता हैऔर मलाला भारत के नेताओं से ये अपील करती हैं कि उन्हें मुस्लिम महिलाओं की उपेक्षा को रोकना चाहिए।मलाला युसुफ़ज़ई वही सामाजिक कार्यकर्ता हैं, जिन्होंने तालिबान की कट्टरपंथी सोच के ख़िलाफ़ संघर्ष करते हुए ये कहा था कि मुस्लिम महिलाओं के लिए धर्म से ज्यादा शिक्षा ज़रूरी है और इसके बाद वर्ष 2012 में तालिबान के आतंकवादियों द्वारा उन पर हमला किया गया था।लेकिन आज वही मामला भारत के मामले में शिक्षा से ज़्यादा हिजाब को ज़रूरी बताती हैं, जिससे उनके दोहरे मापदंडों के बारे में पता चलता है। यह वही हैं जिन्होंने वर्ष 2013 में मलाला द्वारा एक पुस्तक लिखी गई थी, जिसका नाम है, I am Malala। इस पुस्तक में वो लिखती हैं कि बुर्का पहन कर चलना ठीक वैसा ही है, जैसे कोई महिला किसी कपड़े की Shuttlecock में कैद होऔर जब बहुत गर्मी होती है तो ऐसा लगता है कि बुर्का पहनी महिला, किसी Oven के अन्दर बैठी है। इस पुस्तक में वो ये भी लिखती हैं कि उन्हें उनके स्कूल की Royal Blue Uniform से बहुत प्यार था लेकिन तालिबान ने उन्हें धार्मिक पोशाक पहनने के लिए मजबूर किया, जिससे वो बहुत दुखी हुईं थी लेकिन आज वही मलाला, कर्नाटक की मुस्लिम छात्राओं से कह रही हैं कि स्कूल की Uniform ना पहनना उनका अधिकार हैऔर उन्हें हिजाब पहन कर पढ़ने देने चाहिए।एक और मजे की बात बता दू जिस Norway ने मलाला युसुफज़ई को उनके कामों के लिए नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया था, उसी Norway में वर्ष 2018 में एक कानून लाया गया था, जिसके तहत वहां के सभी स्कूलों और कॉलेजों में बुर्का पहनने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। यानी Norway में मुस्लिम छात्राएं बुर्का नहीं पहन सकतीं। लेकिन Norway में बुर्के से बैन हटाने की मांग नहीं करतीं और इसके लिए अपना नोबेल शांति पुरस्कार क्यों नहीं लौटा देतीं? ज़रा सा सोचिये इन मुस्लिम छात्राओं की हिजाब पहनने की मांग मान ली जाती है तो भविष्य में और क्या क्या होगा? इसके बाद स्कूलों में नमाज़ पढ़ने की मांग की जाएगी। आपको याद ही होगा, कर्नाटक के कोलार में 21 जनवरी को कुछ मुस्लिम छात्रों ने नमाज़ भी पढ़ी थी। लेकिन बाद में जब इस पर विवाद हुआ तो इसे बंद करा दिया गया। लेकिन अगर स्कूलों में हिजाब पहनने की मांग को स्वीकार कर लिया गया तो फिर दूसरी मांग होगी, स्कूलों में नमाज पढ़ने की इजाजत देना।कल्पना कीजिए कि अगर इस मांग को भी मान लिया गया तो फिर क्या होगा। फिर ये मुस्लिम छात्र स्कूलों में नमाज पढ़ने के लिए अलग से जगह देने की मांग करेंगेऔर नमाज के दौरान क्लास और पढ़ाई से छूट मांगी जाएगी….. और सोचिए अगर ये मांगें भी मांग ली गईं तो फिर रविवार की जगह, शुक्रवार को जुमे की नमाज के दिन छुट्टी के लिए मुहिम चलाई जाएगी और….. ये सिलसिला ऐसे ही चलता रहेगा…..अगर अभी भी न रोका गया तो…..ये सिलसिला खत्म तभी होगा जब बचे हुए भारत का भी सम्पूर्ण इस्लामीकरण हो चुका होगा।