मध्य प्रदेश, राजस्थान व छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव दलबदलुओं की पौबारह के लिए भी याद किए जाएंगे। देश और दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी का दावा करने वाली भाजपा व शताब्दी से ज्यादा पुरानी कांग्रेस को दलबदलू बेहद भाए और दोनों पार्टियां दूसरे दलों से आए नेताओं पर दांव लगा रही हैं।
अब दोनों दलों को पार्टी कार्यकर्ताओं के विरोध और उनके चुनाव प्रचार में घर बैठने की चिंता सताने लगी है। मध्य प्रदेश में मान मनौव्वल में असफल रहने के बाद भाजपा ने दो पूर्व मंत्रियों समेत 64 बागी नेताओं को पार्टी से बाहर कर दिया है। वहीं दो माह पूर्व राजस्थान विधानसभा चुनाव प्रचार की शुरुआत करते हुए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने ऐलान किया था कि चुनाव में दूसरे दलों से आने वाले लोगों और विधायकों को टिकट नहीं दिया जाएगा। पर चुनावों के करीब आते ही दूसरे दलों से नेताओं, विधायकों और सांसदों का आना शुरू हो गया है।
भाजपा से आए सरताज सिंह, पद्मा शुक्ला, संजय शर्मा, अभय मिश्रा व बसपा से आई विद्यावती पटेल, बाबूलाल जंडेल कांग्रेस के उम्मीदवार हैं। मध्य प्रदेश में भाजपा संगठन को सबसे मजबूत माना जाता है। इसके बावजूद उसने जीत के समीकरण बनाने के लिए कार्यकर्ताओं के बजाए दूसरे दलों से आए नेताओं को उम्मीदवार बनाने में रुचि दिखाई।
भाजपा-कांग्रेस दोनों को ‘दलबदलुओं’ का सहारा
राजस्थान
मानवेंद्र सिंह – पूर्व केंद्रीय मंत्री जसवंत सिंह के बेटे और विधायक मानवेंद्र के शामिल होने से कांग्रेस को राजपूत वोट मिलने की उम्मीद है।
हरीश मीणा – सांसद के पार्टी में आने से मीणा मतदाताओं में कांग्रेस को लेकर भरोसा बढ़ा है। दौसा व आसपास जातीय समीकरण और मजबूत बन गए हैं।
मध्य प्रदेश
संजय सिंह मसानी – मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साले संजय मसानी का कांग्रेस में शामिल होना पार्टी मनोवैज्ञानिक तौर पर अपनी जीत मान रही है। मसानी को कांग्रेस ने बालाघाट से उम्मीदवार बनाया है।
सरताज सिंह – इसके साथ भाजपा से आए सरताज सिंह को होशंगाबाद से टिकट देकर पार्टी ने सीट मजबूत करने की कोशिश की है। क्योंकि, पिछले तीन चुनावों से इस सीट पर कांग्रेस हार रही थी।
छत्तीसगढ़
घनाराम साहू – छत्तीसगढ़ में पहले चरण के मतदान से पहले प्रदेश कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष घनाराम साहू ने पार्टी से इस्तीफा देने के बाद भाजपा में शामिल हो गए। दुर्ग में उनका अच्छा असर माना जाता है।
रामदयाल उईके- इससे पहले कांग्रेस कार्यकारी अध्यक्ष रहे रामदयाल उईके ने भी कांग्रेस का हाथ छोड़ दिया था। उईके ने अब तानाखार सीट से भाजपा प्रत्याशी हैं। ये सीट कभी भी भाजपा के पास नहीं रही है।
भाजपा-कांग्रेस दूसरे दलों से आए नेताओं पर लगा रहीं दांव
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