नई दिल्ली:सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक अहम फैसले में कहा कि किसी को दूसरे राज्य में आरक्षण का लाभ नहीं दिया जा सकता, भले ही उसका विवाह उस राज्य में क्यों न हुआ हो। व्यक्ति का जिस राज्य में जन्म हुआ है, सिर्फ वहीं आरक्षण का दावा कर सकता है।
मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली तीन जज की वृहद पीठ ने कहा, सिर्फ इस आधार पर कि प्रवासी राज्य में किसी जाति को अनुसूचित जाति माना गया है, उस राज्य में आकर बसने वाले व्यक्ति को अनुसूचित जाति का नहीं माना जा सकता। इस बात से भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा कि उसे अनुसूचित जाति का प्रमाणपत्र दे दिया गया हो।
पंजाब में वाल्मिकी समुदाय से आने वाली रंजना ने उत्तराखंड के वाल्मीकि समुदाय के युवक से विवाह किया । यह जाति उत्तराखंड में भी एससी मानी गई है। रंजना ने यहां जिला सूचना अधिकारी पद के लिए आवेदन किया पर उसकी उम्मीदवारी यह कह कर खारिज कर दी गई कि वह पंजाब में एससी है लेकिन उत्तराखंड में वह आरक्षण का लाभ नहीं ले सकती। इसे रंजना ने हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्टमें चुनौती दी। सवाल था कि क्या जो व्यक्ति जन्मस्थान यानी मूल राज्य, जहां वह एससी है, वहां से दूसरे राज्य में विवाहित होकर जाए तो उसे आरक्षण का लाभ मिलेगा या नहीं? इस पर कोर्ट ने यह फैसला सुनाया।
पहले कहा था
सुप्रीम कोर्ट ने 30 अगस्त को दिए एक फैसले में कहा था कि कोई व्यक्ति दूसरे राज्य में जाकर आरक्षण नहीं ले सकता चाहे उसकी जाति इस राज्य में अनसूचित जाति, ओबीसी या अन्य जाति के रूप में मान्यता प्राप्त क्यों न हो। आरक्षण लेने के लिए उसे डोमीसाइल होना आवश्यक है।
अब कहा
पिछले फैसले में ही अदालत ने कहा था कि आरक्षण का लाभ सिर्फ मूल राज्य में ही मिल सकता है। इस बार कोर्ट यह भी साफ कर दिया कि विवाह होने पर भी लाभ नहीं मिलेगा।.
आरक्षण का दावा जन्म से जुड़ा
रंजना कुमारी के मामले में हाईकोर्ट ने कहा था कि किसी राज्य में आरक्षण का दावा जन्म से जुड़ा होना चाहिए। इस फैसले के खिलाफ रंजना सुप्रीम कोर्टपहुंचीं और दो जज की पीठ ने 2013 में यह मामला बड़ी पीठ को सौंपा था।
दूसरे राज्यों में आरक्षण नहीं मांग सकते- सुप्रीम कोर्ट
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