नई दिल्ली:राजस्थान में भाजपा नेतृत्व को अपने अंदरूनी सर्वे और सांगठनिक आकलन के उपर चुनावी समीकरणों को तरजीह देनी पड़ी है। मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की राय सारे तर्कों पर भारी पड़ी है। इसके कारण पार्टी सत्ता विरोधी माहौल थामने की कवायद में दो मंत्रियों समेत केवल 23 विधायकों के टिकट ही काट सकी है। इनमें से भी पांच के परिजन चुनाव मैदान में है, जबकि अंदरूनी रिपोर्ट लगभग 50 विधायकों के खिलाफ थी।
राजस्थान को लेकर रविवार शाम हुई भाजपा की केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक महज ढाई घंटे में ही में ही समाप्त हो गई और 131 उम्मीदवारों की पहली सूची भी देर रात जारी कर दी गई। सूची सामने आने के बाद साफ हो गया कि केंद्रीय नेतृत्व की कवायद व रणनीति पर मुख्यमंत्री का पलड़ा भारी रहा है। सूत्रों के अनुसार जिन नामों को भाजपा नेतृत्व नकार रहा था उनके नाम भी सूची में थे। इसके पीछे प्रदेश नेतृत्व का तर्क था कि पार्टी के पुराने नेताओं के टिकट काटे जाने से बगावत के ज्यादा आसार है, जिसका नुकसान ज्यादा होगा।
राज्य में प्रदेश अध्यक्ष के मुद्दे पर समझौता करने के बाद केंद्रीय नेतृत्व को उम्मीदवारों के नाम पर भी समझौता करना पड़ा है। पहली सूची में 85 विधायकों को फिर टिकट मिला है, जबकि 23 विधायकों के नाम काटे गए हैं। इनमें भी पांच के परिजनों को टिकट मिलने से महज 18 विधायक ही चुनाव मैदान से बाहर हैं। जिन पांच के परिजनों को टिकट मिले हैं उनमें तीन के बेटे, एक के पोते और एक के भतीजे का नाम शामिल है। पार्टी ने पुराने नेताओं के साथ प्रमुख नेताओं के समर्थन वाले नेताओं को भी टिकट दिया है, ताकि सभी मिलकर चुनाव लड़ें और बगावत के आसार न रहें।
पार्टी ने एकमात्र मुस्लिम विधायक का टिकट भी काट दिया है। हाल में भाजपा में शामिल हुए किरोड़ीलाल मीणा की पत्नी गोलमा देवी को मीणा बहुल सीट सपोटरा से टिकट दिया गया है। पूर्व मंत्री स्वर्गीय दिगंबर सिंह, स्वर्गीय सांवरलाल जाट व धर्मपाल चौधरी के बेटों को टिकट दिया गया है। अन्य कई पुराने नेताओं के भी बेटों व बहू मैदान में हैं। मानवेंद्र सिंह के कांग्रेस में शामिल होने के बाद भाजपा ने कर्नल सोनाराम को टिकट देकर सामाजिक समीकरण साधने की कोशिश की है।
भाजपा के अंदरूनी सर्वे पर भारी पड़े वसुंधरा के समीकरण
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