- बोहरा परिवार के सभी चारों सदस्यों ने स्वीकार किया संयम पथ
- आस्था, उत्साह, उल्लास का उमड़ा महासागर, चतुर्मास प्रवास स्थल परिसर बना जनाकीर्ण
माधावरम, चेन्नई (तमिलनाडु)। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें देदीप्यमान महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमणजी ने रविवार को वर्ष के ग्यारहवें महीने (नवम्बर) की ग्यारहवीं तारीख को चेन्नई महानगर के माधावरम में आयोजित भव्य दीक्षा समारोह में 23 लोगों को दीक्षा प्रदान कर चेन्नई की धरा पर तेरापंथ धर्मसंघ के इतिहास में नया स्वर्णिम अध्याय प्रतिपादित कर दिया। चेन्नईवासियों के लिए यह अवसर अद्भुत, अकल्पनीय तथा अविस्मरणिय था। इस कारण हजारों-हजारों नेत्रों ने अपनी अपलक अवस्थिति के साथ इस दृश्य को निहारा और स्वयं को इस अविस्मरणिय पल के साक्षी के रूप में जोड़ लिया। इस भव्य अवसर पर आचार्यश्री ने कुल 23 दीक्षाएं प्रदान कीं। आचार्यश्री ने वर्षों समणी व्रत का पालन करने वाली आठ समणियों का श्रेणी आरोहण साध्वी दीक्षा, तीन नवदीक्षित समणियों को साध्वी दीक्षा, तीन साधु दीक्षा व नौ नवीन समणी दीक्षा प्रदान की।
अद्भुत अकल्पनीय व अविस्मरणिय पल
संपूर्ण भारत ही नहीं पहली बार विदेशी धरती को अपने ज्योतिचरण से पावन बनाने वाले महातपस्वी, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ जब पहली बार दक्षिण की धरा पर चतुर्मास के लिए चेन्नई महानगर में पधारे तो जैन ही नहीं हजारों-हजारों अजैन लोग भी आचार्यश्री की विशाल यात्रा को साश्चर्य निहारा था। जैसे-जैसे वे आचार्यश्री के बारे में जाने, समझे तो उनकी आस्था और भी प्रगाढ़ होती चली गई। यहीं कारण था कि जब रविवार को आचार्यश्री की पावन सन्निधि में दीक्षा समारोह का आयोजन हुआ तो मानों समुद्र तट पर जनता का महासागर उमड़ पड़ा। विशाल महाश्रमण समवसरण बौना नजर आने लगा। प्रवचन पंडाल व आचार्यश्री के प्रवास स्थल के आसपास की सभी जगहें जनाकीर्ण बनी हुई थीं। लोगों में उत्सुकता थी ऐसे अवसर को देखने की जब भौतिकता की अंधी दौड़ में भी अध्यात्म के पथ पर अग्रसर होने का अद्भुत उत्सव, अकल्पनीय और अविस्मरणिय पल का स्वयं गवाह बनने के लिए हजारों जैन व अजैन लोगों का महासागर उपस्थित था।
नमस्कार महामंत्र से समारोह का हुआ शुभारम्भ
प्रातः नौ बजे आचार्यश्री जब अपनी धवल सेना के साथ महाश्रमण समवसरण के मंच पर विराजित हुए तो जयकारों से पूरा वातावरण गुंजायमान हो उठा। आचार्यश्री के नमस्कार महामंत्रोच्चार के साथ समारोह का शुभारम्भ हुआ। समण संस्था से श्रेणी आरोहण कर रही समणियों का परिचय समणियों द्वारा, व शेष मुमुक्षु भाइयों और बहनों का परिचय मुमुक्षु बाइयों द्वारा प्रस्तुत किया गया।
दीक्षार्थियों के परिजनों ने आचार्यश्री को अर्पित किए आज्ञा पत्र
पारमार्थिक शिक्षण संस्था के अध्यक्ष श्री जसकरण चोपड़ा ने आज्ञा पत्र का वाचन किया। उसके उपरान्त सभी मुमुक्षुओं के परिजनों ने आचार्यश्री के समक्ष उपस्थित होकर अपनी ओर से दीक्षा की आज्ञा का पत्र आचार्यश्री को समर्पित किए। इसके बाद भी आचार्यश्री ने दीक्षा से पूर्व दीक्षार्थियों के परिजनों से मौखिक स्वीकृति भी प्राप्त की। समणी चारित्रप्रज्ञा, समणी विकासप्रज्ञाजी आदि ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। श्रेणी आरोहण कर रही समणीवृंद तथा दीक्षा ग्रहण करने जा रही मुमुक्षु बहनों ने पृथक-पृथक गीत के माध्यम से अपने आराध्य की अभ्यर्थना की।
श्रीमुख से प्रवाहित हुई आगमवाणी और आर्षवाणी
उपस्थित विशालतम जनमेदिनी को आगमवाणी का अमृतपान कराते हुए आचार्यश्री ने कहा कि प्राणी में पहले ज्ञान और बाद में दया और आचरण होता है। ज्ञान का परम महत्त्व है। अध्यात्म साधना के क्षेत्र में नौ तत्त्वों का ज्ञान होना नितांत आवश्यक होता है। जीव-अजीव, पाप-पुण्य, आश्रव-संवर आदि सारे कर्मों को जानकर ऐसा कार्य हो की ऐसे समस्त कर्मों से छुटकारा प्राप्त हो जाए। सारे कर्मों से छुटकारा प्राप्त होने की स्थिति को मोक्ष कहा जाता है और मोक्ष प्राप्ति का साधन ही साधना है। इस पथ आगे बढ़ने वाला मोक्ष को प्राप्त कर सकता है। मंगलवाणी से पावन पाथेय प्रदान करने के उपरान्त आचार्यश्री ने दीक्षार्थियों की भावनाओं को भी जाना और उनकी पुष्ट भावों की परीक्षा भी की। तत्पश्चात् आचार्यश्री ने पूर्वाचार्यों आदि स्मरण करते हुए आर्षवाणी के माध्यम से मुमुक्षु बहनों को सर्वप्रथम समणी दीक्षा प्रदान की और उन्हें निर्धारित सावद्य संकल्पों का त्याग कराया। उसके उपरान्त समण श्रेणी से श्रेणी आरोहण कर रही समणियों, नवदीक्षित तीन समणियों का तत्काल श्रेणी आरोहण तथा तीन मुमुक्षु भाइयों को साधु दीक्षा प्रदान कर तीन कर्ण तीन योग से सर्व सावद्य योगों का त्याग के साथ अतीत की आलोचना भी करवाई। इसके साथ ही पूरा प्रवचन पंडाल ‘जय-जय ज्योतिचरण, जय-जय महाश्रमण’ के जयनिंनादों से गूंज उठा। इसके साथ ही चेन्नई की धरती पर आचार्यश्री महाश्रमणजी ने एक नवीन इतिहास का सृजन कर दिया।
केश लोच, रजोहरण के साथ समस्त नवदीक्षितों को प्राप्त हुआ पावन पाथेय
दीक्षा प्रदान करने के पश्चात् आचार्यश्री ने स्वयं मुमुक्षु भाइयों के केश लोच के संस्कार को पूर्ण किया तो महाश्रमणी साध्वीप्रमुखाजी ने साध्वियों और समणियों के केश लोच संस्कार सम्पन्न किए। तत्पश्चात् आचार्यश्री ने साधुओं को रजोहरण व प्रमार्जनी भी प्रदान की तथा सभी नवदीक्षितों को पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि ज्ञान, दर्शन और चारित्र से स्वयं को सम्पन्न बनाने, अपनी आत्मा के कल्याण के साथ-साथ दूसरों के कल्याण का भी प्रयास करने की पावन प्रेरणा प्रदान की।
आचार्यश्री ने सभी दीक्षार्थियों का किया नामकरण, अब नए नाम के साथ संयमपथ पर होंगे अग्रसर
दीक्षा के समारोह के एक और सुन्दर संस्कार नामकरण संस्कार को सम्पन्न करते हुए मुमुक्षु अशोक बोहरा को मुनि अनिकेतकुमार, मुमुक्षु कुलदीप बोहरा को मुनि कौशलकुमार व सबसे कम उम्र के मुमुक्षु शुभम् को मुनि शुभमकुमार नाम प्रदान किया। श्रेणी आरोहण कर रही समणी चारित्रप्रज्ञा को साध्वी चरितार्थप्रभा, समणी परिमलप्रज्ञा को साध्वी प्रांजलप्रभा, समणी विकासप्रज्ञा को साध्वी वैभवप्रज्ञा, समणी रश्मिप्रज्ञा को साध्वी ऋजुप्रभा, समणी आगमप्रज्ञा को साध्वी आगमप्रभा, समणी गौतमप्रज्ञा को साध्वी गौतमप्रभा, समणी सुलभप्रज्ञा को साध्वी शौर्यप्रभा तथा समणी मर्यादाप्रज्ञा को साध्वी मध्यस्थप्रज्ञा नाम प्रदान किया। नवदीक्षित समणी के तत्काल बाद श्रेणी आरोहण करने वाली मुमुक्षु पुष्पलता को साध्वी धैर्यप्रभा, मुमुक्षु रेखा को साध्वी रत्नप्रभा व मुमुक्षु कोमल को तेजस्वीप्रभा नाम प्रदान किया। मुमुक्षु प्रियंका को समणी प्रगतिप्रज्ञा, मुमुक्षु धरती को समणी धृतिप्रज्ञा, मुमुक्षु नम्रता को समणी नंदीप्रज्ञा, मुमुक्षु प्रेक्षा को समणी प्रशस्तप्रज्ञा, मुमुक्षु श्वेता को समणी श्वेतप्रज्ञा, मुमुक्षु यशा को समणी यशस्वीप्रज्ञा, मुमुक्षु दिव्या को समणी दिव्यप्रज्ञा, मुमुक्षु आरती को समणी आदित्यप्रज्ञा तथा मुमुक्षु प्रज्ञा को समणी पूर्णपज्ञा नाम प्रदान किया। प्रत्येक नाम के साथ श्रद्धालुओं का जयघोष समस्त दिशाओं को गुंजयामान बना रहा था। समस्त नवदीक्षितों ने आचार्यश्री को सविधि वंदन किया।
आचार्यश्री ने मुनि अनिकेतकुमार को मुनि कुमारश्रमणजी, मुनि कौशलकुमार को मुनि कीर्तिकुमारजी, मुनि शुभमकुमार को मुनिश्री ऋषभकुमारजी की देखरेख में, समस्त साध्वियों को महाश्रमणजी साध्वीप्रमुखाजी तथा समस्त समणियों को साध्वीवर्याजी की देखरेख में अपने आध्यात्मिक जीवन का विकास करने हेतु सौंपा।
मेघालय के पूर्व राज्यपाल ने भी देखा दीक्षा समारोह, आचार्यश्री के दर्शन कर प्राप्त किया आशीष
जैनियों की दीक्षा में सैंकड़ों-सैंकड़ों की संख्या में उपस्थित अजैन लोगों के साथ मेघालय के पूर्व राज्यपाल रह चुके वी.शंगमुखनाथन ने भी पूरे दीक्षा समारोह के गवाह बने तो दीक्षा कार्यक्रम के उपरान्त आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में उपस्थित होकर पावन आशीष भी प्राप्त किया। यह दीक्षा समारोह केवल तेरापंथ ही बल्कि संपूर्ण चेन्नईवासियों को मानसपटल पर चिरजीवी पहचान छोड़ गया। यह जानकारी नितिन पामेचा एवं प्रसन्न पामेचा ने दी।