द्वापर युग में ऋषि गंगाचार्य ने भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब को कुष्ठ से पीड़ित होने का श्राप दे दिया था। तब नारद जी ने श्राप से मुक्ति के लिए उन्हें 12 स्थानों पर सूर्य मंदिर की स्थापना कर सूर्य की उपासना करने की सलाह दी। इसके बाद साम्ब ने उलार्क (अब उलार), लोलार्क समेत 12 स्थानों पर सूर्य मंदिर बनवाए और सूर्य की आराधना की। इसके बाद उन्हें श्राप से मुक्ति मिली। इसके बाद से इन स्थलों पर छठ पूजा होने लगी। एक रिपोर्ट…
देव के सूर्य मंदिर का निर्माण आठवीं शताब्दी में हुआ था
औरंगाबाद में देव का सूर्य मंदिर आठवीं शताब्दी में बना था। कुष्ठ रोग ठीक होने के कारण राजा ऐल ने तालाब खुदवाया और सूर्य मंदिर का निर्माण कराया। कहा जाता है कि एक ही रात में मंदिर का निर्माण हो गया था। आम तौर पर सूर्य मंदिर का द्वार पूरब दिशा में होने का प्रचलन है, लेकिन देव सूर्य मंदिर का द्वार पश्चिमाभिमुख है। लोग कहते हैं- मुगल शासक औरंगजेब कई मूर्तियों और मंदिरों को ध्वस्त करता हुआ देव पहुंचा। उसने चुनौती दी कि यदि मंदिर का प्रवेश द्वार पूरब से पश्चिम दिशा की ओर हो जाए तो वह इस मंदिर को छोड़ देगा। दूसरे दिन मंदिर का द्वार पश्चिमाभिमुख हो गया, जिसके बाद से प्रवेश द्वार उसी रूप में स्थित है। कार्तिक छठ मेले में प्रत्येक वर्ष 7 से 10 लाख लोग अर्घ्य देने पहुंचते हैं।
बड़गांव मंदिर में राजा साम्ब ने 49 दिन की थी उपासना
विश्व के 12 अर्कों (सूर्य मंदिर) में से एक बड़गांव धाम में देश के कोने-कोने से श्रद्धालु छठव्रत करने आते हैं। बड़गांव का पुराना नाम बर्राक था। मान्यता है कि सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा यहीं से शुरू हुई थी। महर्षि दुर्वाशा जब श्रीकृष्ण से मिलने द्वारिका गये थे, तब वे रूक्मिणी संग विहार कर रहे थे। उसी दौरान राजा साम्ब को हंसी आ गई। महर्षि दुर्वाशा ने इसे उपहास समझ राजा को कुष्ठ होने का श्राप दे दिया। इसके बाद श्रीकृष्ण ने राजा को कुष्ठ रोग से निवारण के लिए सूर्य की उपासना व सूर्य राशि की खोज करने की सलाह दी। राजा राशि की खोज में निकले तो रास्ते में उन्हें प्यास लगी। एक गड्ढे का पानी पीते ही उन्हें अप्रत्याशित परिवर्तन का अहसास हुआ। उन्होंने 49 दिनों तक वहां सूर्योपासना की, जिससे श्राप से मुक्ति मिली।
पंडारक सूर्य मंदिर में मांगी गयी मनोकामना होती है पूरी
अनुमंडल मुख्यालय से 13 किलोमीटर की दूरी पर स्थित पंडारक गांव में स्थापित द्वापर युग के प्राचीन सूर्य मंदिर में सच्चे मन से मांगी गई भक्तों की मनोकामना पूरी होती है । इसी विश्वास के साथ साल भर इस मंदिर में भक्तों का तांता लगा रहता है। छठ पूजा के अवसर पर इस मंदिर में काफी संख्या में भक्त अपने कष्ट निवारण के लिए पहुंचते हैं । गंगा नदी के किनारे स्थित एक मात्र इस पुण्यार्क सूर्य मंदिर की धार्मिक आस्था काफी अधिक है। इस सूर्य मंदिर में गर्भगृह सूर्य के चक्के से ढंका हुआ है । भगवान सूर्य देव की प्रतिमा सात घोड़ों पर सवार है। जन श्रुति के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र सांब ने कुष्ठ के श्राप से मुक्ति पाने के लिए भगवान भास्कर की पूजा की थी। इसके बाद वे कुष्ठ रोग से मुक्त हुए । तब उन्होंने यहां सूर्य मंदिर का निर्माण कराया था।
विदेशों तक गूंज रही बेलाउर सूर्य मंदिर की महिमा
भोजपुर जिला मुख्यालय से करीब 12 किलोमीटर की दूरी पर बसा बेलाउर गांव छठ व्रतियों के लिए आस्था का केंद्र है। छठ के दौरान भगवान भास्कर की आराधना करने के लिए हर साल करीब एक लाख श्रद्धालुओं की भीड़ जुटती है। अब तो विदेशों से भी लोग छठ करने बेलाउर आने लगे हैं। पिछले साल ही कई प्रवासी छठ करने आये थे। श्रद्धालुओं का कहना है कि बेलाउर में छठ करने से सबकी मनोकामना पूरी होती है। बीते 69 सालों से बेलाउर गांव में भैरवानंद तालाब के बीचोंबीच बने सूर्य मंदिर में छठ का व्रत होता आ रहा है । बुजुर्गों के अनुसार, गांव के राजा बावन सुबवा द्वारा 1506 संवत में 208 तालाबों का निर्माण कराया गया था। इनमें से एक भैरवानंद तालाब के बीचोंबीच सहार के करवासीन गांव के रहने वाले मौनी बाबा ने वर्ष 1949 में खरना के दिन ही सूर्य मंदिर की स्थापना की थी। जयपुर से भगवान भास्कर की मूर्ति लाकर स्थापित करायी थी। मंदिर विकास समिति के मीडिया प्रभारी विनय बेलाउर ने बताया कि सूर्य मंदिर परिसर में आगामी 12 नवंबर को छठ महोत्सव का आयोजन किया जायेगा।
उलार में भगवान श्रीकृष्ण के बेटे साम्ब ने किया था स्नान
देश के 12 सूर्य मंदिरों में एक है पटना जिले का उलार सूर्य मंदिर। श्रीकृष्ण के बेटे साम्ब ने कुष्ठ रोग से मुक्ति को यहां किया था स्नान। प्रत्येक रविवार को काफी संख्या में पीड़ित लोग स्नान कर सूर्य को जल व दूध अर्पित करते हैं। देश के 12 आर्क स्थलों में कोणार्क और देवार्क (बिहार का देव) के बाद उलार (उलार्क) भगवान भास्कर की सबसे बड़े तीसरे सूर्य आर्क स्थल के रूप में जाना जाता है। कहा गया है कि सच्चे मन से जो नि:संतान सूर्य की उपासना करते हैं उन्हें संतान की प्राप्ति होती है। पुत्र प्राप्ति के बाद मां द्वारा आंचल में पुत्र के साथ नटुआ व जाट-जटिन के नृत्य करवाने की भी परंपरा है। इतिहास के अनुसार मुगल शासक औरंगजेब ने इस स्थान पर बने मंदिर को तोड़वा दिया था। पर भक्तगण जीर्णशीर्ण मंदिर के ऊपर लगे पीपल के पेड़ व भगवान सूर्य की प्रतिमा की पूजा करते रहे। 1948 में पहुंचे सन्त सद्गुरु अलबेला बाबाजी महाराज ने पीपल के पेड़ की पूजा अर्चना की जिसके प्रभाव से पीपल का पेड़ सूख गया। उसके बाद अलबेलाजी महाराज ने स्थानीय लोगों व भक्तों के सहयोग से इस स्थान पर सूर्य मंदिर का निर्माण कराया।
कृष्ण के पुत्र साम्ब ने शुरू की थी बिहार में छठ पूजा
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