नई दिल्ली:उत्तराखंड में ग्लेशियर टूटने से मची तबाही के बाद विशेषज्ञों ने एक बार फिर सरकार को बड़े जलवायु खतरों को लेकर आगाह किया है। विशेषज्ञों ने यह भी कहा कि सरकार पर्वतीय क्षेत्र में विकास परियोजनाओं खासकर बांधों के निर्माण को लेकर अपनी नीति पर फिर से विचार करे। हिमालय क्षेत्र में पांच हजार से ज्यादा ग्लेशियर हैं, जो वैश्विक तापमान बढ़ोतरी के चलते बेहद संवेदनशील हैं।
हेस्को के प्रमुख डॉ. अनिल जोशी ने कहा कि जिस रैणी गांव में रविवार को ग्लेशियर टूटने की घटना हुई, वह वही गांव है जहां से पांच दशक पूर्व पर्यावरण की रक्षा के लिए मशहूर चिपको आंदोलन की शुरुआत हुई थी। लेकिन यह आपदा दर्शाती है कि पर्यावरण की सुरक्षा नहीं हुई।
शियर के मुहाने पर बांध नहीं बनें: जोशी ने कहा कि ग्लेशियर के मुहाने पर बांधों के निर्माण पर रोक लगाई जानी चाहिए। दूसरे राज्य पानी की क्षमता के आधार पर बांध बनाने की नीति छोड़ें और इससे जुड़े पर्यावरणीय मुद्दों पर पहले ध्यान दें। जितनी भी बांध परियोजनाएं चल रही हैं, इस घटना के आलोक में फिर से उनकी समीक्षा की जाए।
नदियों के तट में बसावट न हो: मौसम विशेषज्ञ आनंद शर्मा ग्लेशियर टूटने की घटना के संदर्भ में कहते हैं कि महीने की शुरुआत में उस क्षेत्र में भारी बर्फबारी हुई थी और कई फुट बर्फ जम गई। लेकिन इसके बाद मौसम साफ होने और धूप निकलने से बर्फ पिघलनी शुरू हुई, जिससे ग्लेशियर के एक बड़े हिस्से में हिमस्खलन हुआ और ऋषिगंगा में पानी का प्रवाह तेज हो गया। उन्होंने कहा कि यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है तथा मौसम में आ रहे बदलावों के कारण इस प्रकार की घटनाएं बढ़ रही हैं। लेकिन बांधों का निर्माण, नदियों के बाढ़ समतल में आवासों का निर्माण ऐसी घटनाओं की स्थिति में जानमाल की क्षति को बढ़ा सकता है। शर्मा के अनुसार इस क्षेत्र में ग्लेशियर टूटने की घटना का पूर्व में कोई संदर्भ नहीं मिलता है।
ग्लेशियरों पर शोध कर रहे आईआईटी इंदौर के प्रोफेसर डॉ. फारुख आजम ने कहा कि उपग्रह के चित्रों से ग्लेशियर की तरफ झील बनने की जानकारी नहीं मिलती है। अभी फरवरी की शुरुआत है और उस इलाके में मौसम ठंडा है। ऐसे में सामान्यतया ग्लेशियर नहीं टूटते हैं। लेकिन कई और संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता है। कई बार बर्फ पिघलने के कारण पानी ग्लेशियर के भीतर चला जाता है और भीतर झील बनने लगती हैं। ऐसी झील का पता नहीं चल पाता है। जब ऐसी झील फटती हैं तो इस प्रकार की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। दूसरे, एक संभावना यह है कि बर्फबारी से पहले भूस्खलन हुआ जिसने नदी में झील बनाई और नदी को अवरुद्ध किया। फिर झील टूटने से नदी का प्रवाह बढ़ा। लेकिन इस मामले में वास्तव में क्या हुआ, यह तभी पता चल पाएगा जब वैज्ञानिकों की टीम वहां का दौरा करेगी या उपग्रह की कोई तस्वीर सामने आएगी।
प्रोफेसर फारूक कहते हैं कि जलवायु खतरों के मद्देनजर ग्लेशियर बेहद संवेदनशील हैं। लेकिन ग्लेशियरों पर हमारा रिसर्च बेहद कम है। हमारे पास जो भी आंकड़े उपलब्ध हैं, वह उपग्रह की तस्वीरों से हैं, लेकिन जमीनी आंकड़ों की उपलब्धता कम है। इसलिए आज ग्लेशियरों की संवेदनशीलता पर गहन शोध की जरूरत है। क्योंकि हिमालय क्षेत्र के ग्लेशियर बेहद संवेदनशील हैं।
आईपीसीसी की रिपोर्ट तैयार करने में अहम भूमिका निभाने वाले जलवायु विशेषज्ञ डॉ. अंजल प्रकाश कहते हैं कि यह एक जलवायु परिवर्तन से जुड़ी घटना है। दुनिया के कई हिस्सों में यह देखा गया कि बर्फबारी के दौरान हिमस्खलन की घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है। ताजा रिपोर्ट यह भी बताती हैं कि हिंदूकुश हिमालयन क्षेत्र में तापमान में बढ़ोतरी के कारण बर्फबारी के समय पैटर्न और मात्रा में बदलाव आया है। यह आपदा भी इन्हीं प्रभावों की ओर संकेत कर रही है।