मुंबई: मुलुंड की रहने वाली सरोज दासानी ने लगभग 11 साल पहले राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (NCDRC) को एक शिकायत दर्ज कराई थी। शिकायत में उन्होंने कहा था कि उनके राष्ट्रीयकृत बैंक के लॉकर से 1.30 करोड़ रुपये के गहने चुरा लिए गए। NCDRC ने 11 साल बाद अब जाकर उस शिकायत की सुध ली है। एनसीडीआरसी ने सरोज दासानी से मामले को सिविल कोर्ट ले जाने को कहा है। उनका कहना था कि यह मामला वहां के लिए उचित है और वहां इसे बेहतर न्याय मिलेगा। क्योंकि यह मामला व्यापक मौखिक और दस्तावेजी साक्ष्य की रिकॉर्डिंग के लिए आवश्यक है।
एनसीडीआरसी के अध्यक्ष दिनेश सिंह ने कहा कि यह मामला ऐसा नहीं है कि रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री और साक्ष्य की विशिष्टताओं से स्थिर किया जा सके। उपभोक्ता आयोग जैसे अर्ध-न्यायिक मंच इसके लिए बेहतर जगह है। सरोज ने अपनी शिकायत में कहा था कि उन्होंने जून 2008 में स्टेट बैंक ऑफ बीकानेर की मुलुंड (पश्चिम) शाखा में एक लॉकर खोला था और हीरे के आभूषण जैसे कुछ महत्वपूर्ण कागजात और कीमती सामान लॉकर में रखे थे।
जानें पूरा मामला
बाद में जब उन्होंने जुलाई 2008 में बैंक का दौरा किया, तो वो बैंक के लॉकर प्रभारी की डेस्क पर लॉकर की अपनी चाबी भूल गईं। वह बैंक में वापस गई और लॉकर को फिर से जांचा तो पाया कि सब कुछ ठीक था। लेकिन 17 नवंबर, 2008 को जब उसने फिर से बैंक का दौरा किया और लॉकर खोला, तो दासानी ने देखा कि लॉकर पूरी तरह से खाली था और उनके सभी दस्तावेज गायब थे। वह पूरी तरह से स्तब्ध थी और उन्होंने तुरंत शाखा प्रबंधक से लिखित शिकायत दर्ज कराई।
सरोज दासानी का मानना था कि जब वो अपनी चाबी बैंक में भूल गईं थी तो किसी ने उनके लॉकर की दूसरी चाबी बनवा ली और फिर उस चाबी को उनका कीमती सामान चोरी करने के लिए इस्तेमाल किया. उऩ्होंने इस चोरी के लिए बैंक को जिम्मेदार ठहराया. उनका कहना था कि बैंक के लॉकर को मास्टर चाबी के बिना और कोई नहीं खोल सकता है और वो सिर्फ एक बैंक अधिकारी के कब्जे में रहती है. इसलिए उनके 1.30 करोड़ के कीमती सामान की चोरी के लिए बैंक ही जिम्मेदार है.
बैंक ने क्या कहा?
बैंक ने शिकायत का जवाब देते हुए कहा कि शिकायतकर्ता के पति द्वारा स्वतंत्र रूप से भी लॉकर चलाया जा रहा था। बैंक ने यह भी कहा कि इस मामले में तथ्यों के विवादित प्रश्न शामिल हैं और इसलिए इस मामले को उपभोक्ता आयोग के सामने नहीं बल्कि नागरिक अदालत द्वारा सुना जाना चाहिए। एनसीडीआरसी ने बैंक के विवाद को स्वीकार कर लिया और शिकायतकर्ता को उसकी शिकायत के साथ सक्षम सिविल कोर्ट के दरवाजे खटखटाने की स्वतंत्रता के साथ शिकायत वापस कर दी।