- 12 कि.मी. का विहार कर आचार्यश्री पहुंचे हेमजी का तला स्थित रा.उ.मा. विद्यालय
- विद्यालय के विद्यार्थियों, शिक्षकों व ग्रामीणों ने किया शांतिदूत का हार्दिक अभिनंदन
- श्रीमुख से स्वीकार की प्रतिज्ञाएं, मंगल आशीष से हुए लाभान्वित
23.01.2023, सोमवार, हेमजी का तला, बाड़मेर (राजस्थान)। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के 159वें मर्यादा महोत्सव के लिए बाड़मेर के बायतू की ओर गतिमान जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना संग सोमवार को हेमजी का तला गांव में स्थित राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में पधारे। जहां विद्यालय के शिक्षकों, विद्यार्थियों व अन्य उपस्थित ग्रामीणों ने आचार्यश्री का भावभीना अभिनंदन किया। आचार्यश्री सभी पर आशीषवृष्टि करते हुए आज के प्रवास के लिए विद्यालय में पधारे।
सोमवार को प्रातःकाल शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी कानोड़ से गतिमान हुए। आज आसमान के सूर्य पर मानों बादलों का पहरा था। इस कारण सर्दी का प्रकोप बढ़ा हुआ था। कुछ समय बाद सूर्य बादलों की ओट से अवश्य निकला, किन्तु उसकी किरणों की तीव्रता आज मानों न के बराबर थी। सूर्य किरणों की मन्दता और हवा का बहाव लोगों को ठिठुरने पर मजबूर कर रहा था। बहती बर्फीली हवा लोगों को घरों से बाहर निकलने से रोक रही थी, किन्तु दृढ़ संकल्पी आचार्यश्री महाश्रमणजी निरंतर गंतव्य की ओर गतिमान थे। मार्ग में यदा-कदा दिखने वाले लोगों को आचार्यश्री के दर्शन और आशीष प्राप्ति का सौभाग्य प्राप्त हुआ। ऊंचे-ऊंचे रेत के टिलों के मध्य बना पथ भी आरोह-अवरोह से युक्त था। लगभग बारह किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री हेमजी का तला गांव में पधारे। बायतू में मर्यादा महोत्सव के मंगल प्रवेश से दो दिन पूर्व बायतू क्षेत्र के इस गांव में पधारे तो सैंकड़ों की संख्या में बायतूवासियों ने भी आचार्यश्री का भावभीना अभिनंदन किया।
युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपने मंगल प्रवचन में समुपस्थित जनता को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि सभी प्राणी सुखी रहना चाहते हैं, दुःखी कोई नहीं बनना चाहता है तो सुखी बनने के लिए आदमी को अपने रास्ते का सही चयन करना होगा। सुखी जीवन के लिए एक सूत्र बताया गया कि सुकुमारता को छोड़ परिश्रमी बनने तथा कठोर जीवन जीने का प्रयास करना चाहिए। आदमी में परिश्रमशीलता हो। आलस्य के समान आदमी का कोई शत्रु नहीं होता तो परिश्रम के समान आदमी का कोई भाई-बन्धु नहीं होता। इसलिए आदमी को परिश्रम जैसे भाई-बन्धु को अपना बनाने का प्रयास करना चाहिए।
मात्र कामना से नहीं, सार्थक उद्यम करने से कार्य की सिद्धि संभव हो सकती है। परिश्रम के साथ प्रतिभा हो तो और अच्छा कार्य हो सकता है। अवांछनीय कामनाओं का परित्याग करने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री ने विद्यार्थियों के पांच लक्षणों- कौवे जैसी चेष्टा, बगुले जैसी एकाग्रता, श्वान की तरह निद्रा, अल्पहारी और गृहत्यागी का वर्णन करते हुए कहा कि विद्यार्थियों का लक्ष्य प्राप्ति का हो, मात्र अंक पाने का नहीं। अंक पाने के लिए विद्यार्थी को अनैतिक कार्य से बचने का प्रयास करना चाहिए। ज्ञान प्राप्ति के लिए परिश्रम किया जाए तो अच्छे ज्ञान की प्राप्ति हो सकती है।
आचार्यश्री के आह्वान पर समुपस्थित शिक्षकों, ग्रामीणों व विद्यार्थियों ने सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति के संकल्पों को सहर्ष स्वीकार किया और आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद भी प्राप्त किया। हेमजी का तला गांव के सरपंच श्री भंवरलाल गोदारा तथा विद्यालय के प्रिंसिपल श्री पारसमल लीलड़ ने अपनी आस्थाक्ति अभिव्यक्ति दी। संसारपक्ष में बायतू से संबद्ध मुनि रजनीशकुमारजी ने भी अपने आराध्य के समक्ष अपने हृदयोद्गार व्यक्त किए।