- राजापुरा से मांझी और मांझी से चांदारुण को पावन करने पहुंचे ज्योतिचरण
- अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थितियों में रखें समता भाव : समता के साधक आचार्यश्री महाश्रमण
- ग्राम्यजनों और छात्रों ने श्रीमुख से स्वीकार किए सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति के संकल्प
20.11.2022, रविवार, चांदारुण, नागौर (राजस्थान)। जन-जन के मानस को पावन बनाने, मानव-मानव में मानवता को जागृत करने को निरंतर गतिमान जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, अखण्ड परिव्राजक, महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने रविवार को महाश्रम करते हुए एक दिन में लगभग 21 किलोमीटर का प्रलम्ब विहार किया। रविवार को प्रातः युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी राजापुरा गांव से मंगल प्रस्थान किया। राजापुरावासियों पर आशीष बरसाते आचार्यश्री गतिमान हुए। मार्ग में आने वाले अन्य कई गांव के ग्रामीणों को अपने दर्शन और मंगलवाणी से पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए आचार्यश्री लगभग 13 किलोमीटर का विहार कर मांझी गांव स्थित दधिमती महाविद्यालय परिसर में पधारे। जहां ग्रामीणों व छात्रों ने आचार्यश्री का भावभीना स्वागत किया।
महाविद्यालय परिसर में आयोजित मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उपस्थित जनता को मंगल संबोध प्रदान करते हुए कहा कि समता को धर्म कहा गया है। आदमी के जीवन में अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थितियां आती रहती हैं। अनुकूलता की स्थिति में आदमी को ज्यादा खुश नहीं और प्रतिकूलता की स्थिति में ज्यादा दुःखी नहीं होना चाहिए। अनुकूलता और प्रतिकूलता दोनों ही परिस्थितियों में समता भाव, शांति रखने का प्रयास करना चाहिए। समता की साधना अध्यात्म की आराधना होती है। व्यापार-धंधे में कभी मुनाफा हो जाता है तो कभी नुक्सान भी उठाना पड़ सकता है। विद्यार्थी कभी प्रथम स्थान प्राप्त कर लेता है तो कभी फेल भी हो सकता है। ऐसी अनुकूलता और प्रतिकूलता की स्थिति में समता भाव रखने का प्रयास करना चाहिए। हताश, निराश नहीं होना चाहिए, बल्कि आदमी को पुनः प्रयास करने के लिए तैयार हो जाना चाहिए। चुनाव में कभी हार होती है तो कभी जीत होती है। शरीर भी कभी बहुत स्वस्थ और अच्छा होता है तो कभी कोई कष्ट भी आ जाता है। सुख-दुःख की स्थिति में समता की साधना को पुष्ट बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री ने आगे कहा कि जीवन में कभी कोई निंदा करे अथवा प्रशंसा करे, कभी मान मिले अथवा कभी अपमान का सामना करना पड़े, सम भाव में रहने का प्रयास करना चाहिए। जीवन के कार्य में कभी असफलता मिले, लेकिन प्रयास करते रहना चाहिए। धैर्य को बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए। जीवन संघर्षमय है, इसमें निरंतर आगे बढ़ने का प्रयास करते रहना चाहिए। आचार्यश्री की प्रेरणा से समुपस्थित छात्रों और ग्राम्यजनों ने श्रीमुख से सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति के संकल्पों को स्वीकार किया। आचार्यश्री के स्वागत में महाविद्यालय के प्रिंसिपल श्री इंद्रारामजी ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। डेगाना ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने श्रावक शोभजी के जीवन पर आधारित अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी।
अल्प समय के विराम के पश्चात युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने लगभग ढाई बजे पुनः गतिमान हुए। आचार्यश्री के आगमन से चांदारुण गांववासी हर्षविभोर बने हुए थे। ग्रामीणों ने आचार्यश्री का अपने गांव में भावभीना अभिनंदन किया। आचार्यश्री के स्वागत में बाल-वृद्ध सभी सोत्साह उपस्थित थे। आचार्यश्री लगभग आठ किलोमीटर सम्पन्न कर रात्रिकालीन प्रवास हेतु चांदारुण में स्थित राजकीय मालिका माध्यमिक विद्यालय में पधारे। जहां देर रात तक आचार्यश्री के दर्शनार्थ ग्रामीणों के उपस्थित होने का तांता लगा हुआ था।